कुछ बातें… अंजानी, अनकही!

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  • ज़िन्दगी की यह कहानी, हर रोज़ है दोहराती।

कलाकार वही होते हैं, किरदार बदल जाते हैं।

एक पहलू में हैं पत्थर, दूजे में कोमल पंखुड़ी नज़र आते हैं।

अजब है दोगलापन, गज़ब की अदाकारी,

बे-दिल हैं यह इंसान, बे-सुध है समझदारी।

  • आज बहुत दिनों के बाद एक नयी आवाज़ सुनी,

हर नज़ारे में भी छुपी एक नयी बात कहीं।

नव्य-नवेली सी हर गली में अपना सा लगा,

जैसे किसी परदेस में अपना एक घरोंदा है बसा।

  • “क्यों”

अक्सर दुनिया के चाल-चलन, पहेली से लगते हैं,

हर गली में मनते रीत-रिवाज़, जलेबी से लगते हैं।

मन के हर कोने में ये ‘क्यों’ क्यों हिलोरे लेता है?

ज्ञानियों से पूछा तो जवाब बस टका-सा यही मिला-

दुनिया में यह सब सदियों से ऐसे ही तो होता है!

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